भारत जोड़ो यात्रा से पहले कांग्रेस तेलंगाना में बिखरी पड़ी थी, ज्यादातर नेता पार्टी छोड़ बीआरएस या बीजेपी में चले गए थे. खुद कांग्रेस का आंतरिक सर्वे बता रहा था कि, पार्टी बीआरएस और बीजेपी के बाद नम्बर तीन पर चल रही है. ऐसे में राहुल गांधी ने तेलंगाना को लेकर खास रणनीति तैयार की.
राहुल ने करीबियों से कहा कि, तेलंगाना बनाने के लिए उस वक्त पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को तमाम मुश्किलें झेलनी पड़ीं, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में पार्टी शून्य पर चली गई और फिर भी 10 सालों से यहां सत्ता में नहीं आ सके. इसमें दोष पार्टी की रणनीति का है. फिर क्या था, आनन फानन में नए प्रभारी माणिकराव ठाकरे की नियुक्ति हुई.
कांग्रेस आक्रामक हो गई, बीआरएस, बीजेपी और ओवैसी को एक ही थाली का चट्टा-बट्टा बताने की दिशा में चल निकली. राहुल के कहने पर ही पार्टी की कार्यसमिति की बैठक का आयोजन किसी सत्ताधारी राज्य के बजाय तेलंगाना में किया गया. पार्टी में धीरे-धीरे पुराने नेताओं की वापसी होने लगी.
सिर्फ तेलंगाना में ही हुई सोनिया गांधी की रैली
इतना ही नहीं राहुल के आग्रह पर पांच राज्यों में से सिर्फ तेलंगाना में ही सोनिया की रैली हुई, जहां सोनिया ने तेलंगाना बनाने की याद दिलाई और भविष्य की चुनावी गारंटियों का ऐलान किया. माणिकराव ठाकरे ने कहा है कि सोनिया गांधी ने गरीबों, पिछड़ों की मदद के लिए तेलंगाना राज्य बनाया, लेकिन केसीआर ने लूट लिया.
पांच राज्यों में से तेलंगाना पर सबसे ज्यादा जोर
दरअसल, इसे राहुल की मां को सियासी तोहफा देने की चाहत कहें या फिर कर्नाटक बीजेपी से छीनने के बाद दक्षिण भारत मे बीजेपी को सियासी तौर पर रोकने की कोशिश. उन्होंने 5 राज्यों में अब तक तेलंगाना पर सबसे ज्यादा समय और जोर दिया है.
खुद राहुल बाकी राज्यों में प्रचार तो कर रहे हैं, लेकिन अंदरखाने वहां की रोजमर्रा की रणनीति का जिम्मा मल्लिकार्जुन खरगे और प्रियंका गांधी सम्भाल रहे हैं. राहुल और कांग्रेस जानते हैं कि, उत्तर भारत में बीजेपी की मजबूती का मुकाबला वो कुछ हद तक वो दक्षिण भारत में बीजेपी को विस्तार करने से रोक कर कर सकते हैं.